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कुछ कहने से वो क्यों झिझकते हैं
माना हम नज़रों की जुबां को समझते हैं
कुछ अजीब से चुप चाप ये रिशते हैं
ना तुम कुछ कहते हो ना हम कुछ कहते है
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