फूलों से मोहब्बत काँटों से बेरुखी क्यों है
ए ख़ुदा तेरे जहाँ में इतनी खुदगर्ज़ी क्यों है
काँटों पर ही तो सजी है गुलेबाहर
फिर क्यों काँटों से खफा है ये संसार
फूलों को तो पल भर खिल के बिखर जाना है
काँटों को तो फिर भी साथ निभाना है
फूल बेवफा हो कर भी मोहब्बत ही क्यों पाते हैं
कांटे वफ़ा करके भी नफ़रतों में क्यों रह जाते हैं
No comments:
Post a Comment