Friday, January 22, 2010

आदमी आदमी का शिकार हो रहा है'

आदमी आदमी का शिकार हो रहा है
हर शख्स एक शख्स का गुनहगार हो रहा है,

हर तरफ लगी है दौड़  ,धन,दौलत और शोहरत पाने की है होड़ ,
ऊंचाई छुनेकी आरज़ू लिए अपनी मिट्टी से बिछड़  रहा है।
आदमी आदमी का...................................................

तोड़  रहा है मजहब के नाम पर मंदिर मस्जिद और गुरद्वारे ,
अब तो खुदा का रहना भी दुष्वार हो रहा है।
आदमी आदमी का..........................................................

देख रहा है इन्सान का तमाशा वो ऊपर बैठा खतावार सा,
इन्सां को ज़मीन पर ला कर खुदा भी शर्मसार सा हो रहा है।
आदमी आदमी का........................................................

1 comment:

  1. bharat ka rehne wala hoon, bharat ki baat sunata hoon.

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