रूठ के तुम हमसे किधर जा रहे हो,
जुस्तजू हमारी है इक नज़र तुम्हारी,
क्यूँ हमसे निगाहें कतरा रहे हो,
किधर जा रहे हो,किधर जा रहे हो,
रूठ के ................
हसीनो का इतराना भी तो इक अदा है,
अदाएं दिखा के क्यूँ तड़पा रहे हो,
किधर जा रहे हो,किधर जा रहे हो।
रूठ के................
इस दिल्लगी की न ऐसी सजा दो,
तरसा के तुम क्यूँ यूँ चले जा रहे हो,
किधर जा रहे हो,किधर जा रहे हो,
रूठ के .................
चलो दे दो माफ़ी,न होगी फिरगुस्ताखी,
मोहब्बते -दिल को क्यूँ तोड़े जा रहे हो,
किधर जा रहे हो,किधर जा रहे हो।
रूठ के तुम हमसे क्यूँ चले जा रहे हो.
No comments:
Post a Comment