Friday, December 4, 2020

किताबें : Inspired from Gulzar Sahab's Poem

यूँ हसरत भरी निगाहों से किताबें हमें झांकें 
है फुर्सत किसे कि उनकी तरफ़ भी ताके 

एक दौर था लिपटे रहते उनसे रात भर जागे 
अब ये दौर कि नज़रें फिराए उनसे दूर भागें 

मिल गयी है नई मोहब्बत जिसे गोद  बिठाए रहते 
कुछ और नहीं दोस्तों लेपटॉप उसे कहते 😀

एक और भी है महबूबा जिसे देख स्माइल हैं करते 
कुछ और नहीं दोस्तों मोबाइल उसे कहते 😀

उसकी कमर में उँगलियाँ फिराते फिराते 
कुछ इस तरह भटकते हैं जाते 

और वो किताबें बस यूँ ही 😔
हसरत भरी निग़ाहों से हमें झांके 

3 comments:

  1. Bhai bahut khoob lage rahite

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  2. बहुत खूब...दोस्त..
    बहुत khoob

    Keep writing ..keep posting

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