Sunday, November 14, 2010

कभी किसी को मुक्कुअमल जहाँ नहीं मिलता : कुछ नया touch

कभी किसी को मुक्कुअमल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं जमीं तो कहीं आसमान नहीं मिलता ।

लगी है होड़  एक दुसरे को हराने की ।
ये ऐसी दौड़  है जिसका सिरा नहीं मिलता
कभी किसी को मुक़मल...............
 कहीं जमीं तो कहीं......................

ऐसे मेरी तुझसे कोई खास जान पहचान तो नहीं ,
कौन, कब दिल को क्यूँ भा जाये इसका पता नहीं चलता .

 कभी किसी को मुकमल ...................
कहीं जमीं तो कहीं ..........................



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