मिलने को कोई भी तैयार नहीं है
ना मानो तो कोई दीवार नहीं है
अपनो पर अब कोई अधिकार नही है
सत्य है पर स्वीकार नहीं है
भूल से रहे है वो रिश्ते मिलतीजुलती बातें
छतों पर गुजरती थी खेलकूद की रातें
उनसे अब कोई भी सरोकार नहीं है
सत्य है पर स्वीकार नहीं है
उन हसीन रिश्तों को तोड़े हुए
अहम और वहम की चादर ओढ़े हुए
फैंकने को कोई तैयार नहीं है
सत्य है पर स्वीकार नहीं है
ना कोई फोन था ना कोई बुलाता था
मनमौजी थे मन किया मिल लिया जाता था
बुलाने पर भी मिलने को कोई तैयार नहीं है
सत्य है पर स्वीकार नहीं है
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